बिखर गया हूँ...

बिखर गया हूँ इतना के जुड़ा नहीं जाता
हसरतेे इतनी भी ना हो के दवा न लगे
ना दिल को सुकून आया ना रूह रोयी
मोहब्बतें इतनी भी न हो के दुआ न लगे
मोहब्बत ए जुनूं कुछ ऐसा छाया
कीमते इतनी भी ना हो के मौका ना लगे
टूट कर लिखता हूँ तो हंस रहे है
ज़ख्म गहरा तो है पर लहू न निकले !

ना चैन..

ना चैन आया, ना दिल को सुकून
बस वो याद आये और उनके वहम..

न चिराग़...

न चिराग़ बुझते, न बुझती शमाँऐं देखो
इश्क़ में अंधे का ये सहारा देखो...

मोहब्बत...

मोहब्बत का असर कह दो या गरीबी का सबक कह दो जो भी कहो एक शख्स से शायर का सफ़र कह दो..

नफरत..

नफरत गर करुं तो कितनी करुं उनसे मौला
न मोहब्बत से खारा कुछ न मोहब्बत से मीठा कुछ..

तेरे शहर में....

तेरे शहर में क्या आया बदनाम हो गया..न नज़र से नज़र मिली और कत्ले आम हो गया ।

नजर से नजर...

नजर से नजर मिली, नजर गँवा बैठे
तुम्हारे शहर में क्या आये, दिल गँवा बैठे ।

यू ही पूछ...

यू ही पूछ लेता हूँ उनसे मगर
मेरी रजा पे उनका फैसला आम नहीं होता
वो भी तो सच कहती है
ये इश्क़ है, सरे आम नहीं होता ।

मेरे मौला..

मेरे मौला तेरी इनायतों की कमी से खफा नहीं मैं,

मेरे कर्मो का फलसफा मुझे दोजख ना मिले ।


हुक्मरानों की

हुक्मरानों की बस्ती में, जलसा सा लगता है आज
किसी आशिक का जनाजा है, या मेहरबाँ की डोली मालूम नहीं...

वो आयेेे..

वो आयेेे मेरे दर पे, सितम ये क्या कर दिया
जो आँखें कभी भीगी न थी, उन्हें समंदर कर दिया ।

शेरो शायरी...

शेरो शायरी की दुकाने अब बन्द ही सही
मुशायरों की मंडियों में अपने भाव कम है..

मुकद्दर...

मुकद्दर हँसता है रोज मेरी नादानियों पर
मुकद्दर को नहीं मालूम क्या चीज हूँ मैं..

तेरे कूँचे..

तेरे कूँचे से निकलूँ तो जाऊँ कहाँ
सारा शहर सुना है बिना तेरे.. 

जुबां कड़वी ही..

जुबां कड़वी ही सही मगर दिल बड़ा लिए बैठेे है
नज़र की क्या कहूँ कुछ लोग इरादे बड़े लिए बैठे है
ना दिल की सुनी न सुनी कभी दिमाग की
नजरिये में क्या रखा है कुछ लोग जिंदादिली लिए बैठे है..

उलझा हुआ..

उलझा हुआ हूँ बहुत, मुझे आसान बना देना
वक़्त बेवक़्त साथ रहकर, मुझे जीना सीखा देना
खामियां होती है सबमें, मुझे मेरी बता देना
फ़िक्र हो या न हो तुमको, कभी तो हक़ जता देना

सिर्फ चाह लेने..

सिर्फ चाह लेने भर से सब कुछ यहाँ नहीं मिलता ;
चाहे लुट जाये किसी का सब कुछ आसमां नहीं हिलता ;
खिल उठता है कमल कीचड़ में रह कर भी ;
फूल कोंई गुलशन में रह कर भी नहीं खिलता !!

तुमसे मिला तो..

तुमसे मिला तो हूँ लेकिन मिलना तुमसे हो ना सका
रास्ते जुदा नहीं थे फिर भी तेरे साथ चलना हो न सका
मंजिल मिल ना सकी मुझको और तेरी मंजिल बदल गयी
जो करना चाहा हुआ नहीं और नसीब का बदलना हो ना सका !

इक अश्क हूँ..

इक अश्क हूँ तेरी आँखों का बहता हू तो बह जाने दे ....!
रोके से न रुकुंगा तेरे हर दर्द मुझे सह जाने दे ॥!
क्यों बैठी हैं गुमसुम गुमसुम गमें दिल का तूफ़ान लिए ॥!
जो बात न कह सके लब तेरे इस अश्क को कह जाने दे .!!!!

भंवरा फूल पर...

भंवरा फूल पर बैठा था, रस पाने की चाह में !
फूल ने उसका स्वागत किया, ले लिया अपनी बाहं में !
हमने तो चाहा दूर से, बस फूल की खुशबु लेना !
पर फूल को ये मंजूर न था, और कांटा चुभ गया पावं में !!

नींदों में तेरी..

नींदों में तेरी याद आती हैं सपना बनकर
जागता हूँ तो तू नजर आती हैं अपना बनकर
सोचता हूँ बिछुड़ गए हम तो क्या होगा
इक दूजे से हुए जुदा हम तो क्या होगा
ऐसी बातें दिल को धड़काती हैं बहाना बन कर
तेरे बिना ना रह पाउँगा ऐ सनम
तेरी जुदाई ना सह पाउँगा मेरे सनम
मेरी जिन्दगी में तू आई हैं खजाना बनकर...!!!!

तेरे चेहरे की..

तेरे चेहरे की ये रोनक, किसी के दिल का अरमान थी;
तेरे होठों पैर जो आई, किसी और की मुस्कान थी;
तुने भुला दिया उसकी यादों को भी अपने दिल से;
जिसके दिल में तू कभी बन कर आई मेहमान थी....!!

महफ़िल में..

महफ़िल में तेरी आया था कि, शायद दिल बहल जाये ;
मेरे सीने में छुपा हैं जो ग़म, शायद ख़ुशी में बदल जाये ;
शायद मिल जाये कोंई ऐसा, जिसे कह सकूँ दर्द ऐ दिल;
तूफ़ान में फंसी मेरी कश्ती को, मिल जाये कोई साहिल;
पर ना मिल सका वो सुकून, जिसकी थी मुझको तलाश;

प्यार तो तुमसे..

"प्यार तो तुमसे  करता हूँ पर इज़हार करूँ तो कैसे
तुम्हारा दीदार तो करता हूँ पर आँखे चार करूँ तो कैसे 
रूप तुम्हारा सलोना हैं ऐसा की तुमसा सुन्दर कोंई नहीं 
तुम्हे देखकर लगता हैं तुम्हारा श्रृंगार करूँ तो कैसे !!!!"

नज़ूमी कहा से...

नज़ूमी कहाँ से लाऊँ जो बदल दे मेरे सितारों की चाल
दिन तो कट जाता है मगर राते होती है बेहाल..

रंजिश ज़माने की..

रंजिश ज़माने की तेरी और न आने दूंगा
बस तकलीफ यही है की अब में तुझे न चाहूँगा
मगर कमबख्त इस दिल का क्या करूँ
जो हर बार धड़केगा बस "तेरे लिए"..

कभी अपनी..

कभी अपनी हंसी पर भी आता है गुस्सा,
कभी सारे जहाँ को हँसाने को जी चाहता है
कभी छुपा लेता है गमो को किसी कोने में ये दिल,
कभी किसी को सब कुछ सुनाने को जी चाहता है

दिलजले..

दिलजले मुशायरों का वक़्त देखते नहीं
माँ बाप से बोले हुए जिन्हें बरसों हुए. |

कभी लगते..

कभी लगते है अपने बेगाने से,
कभी बेगानों को अपना बनाने को जी चाहता है,
कभी उपर वाले का नाम नहीं आता जुबान पर,
कभी उसको मानाने को जी चाहता है,
कभी लगती है ये जिंदगी बड़ी सुहानी,

रात सारी..

रात सारी बैठ कर अपनी बर्बादी का अफसाना लिखा मैंने,
जब भी कलम उठाई खुद को ही दीवाना लिखा मैंने
ये वादियाँ ये मंज़र ये चाँद सितारे लगते है अपने से,
इन अपनों के बीच अपने ही दिल को बेगाना लिखा मैंने

मेरे इश्क..

मेरे इश्क में दर्द नहीं था
पर दिल मेरा बेदर्द नहीं था
होती थी मेरी आँखों से नीर की बरसात
पर उनके लिए आंसू और पानी में फर्क नहीं था... 

जब उसकी..

जब उसकी धुन में जिए जा रहे थे
हम भी चुप-चाप रहा करते थे
आँखों में प्यास हुआ करती थी
दिल में तूफान उठा करते थे
लोग आते थे ग़ज़ल सुनने को
हम उसकी बात किया करते थे

ये दर्द..

ये दर्द का तूफान गुजरता क्यों नहीं
दिल टूट गया है तो बिखरता क्यों नहीं
एक ही शक्स को चाहता है क्यों इतना
जालिम कोई दूसरा इस दिल में उतरता क्यों नहीं... 

तू दर्दे-दिल..

तू दर्दे-दिल को आईना बना लेती तो अच्छा था,
मोहब्बत की कशिश दिल में सजा लेती तो अच्छा था,
किसी के इश्क में आंखों से जो बरसात होती है,
उसी बरसात में तू भी नहा लेती तो अच्छा था,
तेरे जाने की आहट से किसी की जां निकलती है
तू किसी की जान बचा लेती तो अच्छा था...!!!

अश्क..

पलकोँ की दहलीज पर, अश्क सा झिलमिलाता रहा..
तुम भी छिप-छिप कर रोते रहे, मैँ भी आंसू बहाता रहा...!!

मान जायें..

मान जायें हम मनाओ तुम अगर...
आ भी जाए हम बुलाओ तुम अगर..!
आ गये जब हम वफ़ा की बात क्या..
जाँ लुटा दें आजमाओ तुम अगर...!
यूँ तो हैं कागजे-दिल भीगा हुआ...
जल उठे शायद ज़लाओ तुम अगर..!!

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Hello friends !!
I am Kamlesh Ameta.
I am an IT professional.
I would loved to express my feelings in the form of shayries.

बिखर गया हूँ...

बिखर गया हूँ इतना के जुड़ा नहीं जाता हसरतेे इतनी भी ना हो के दवा न लगे ना दिल को सुकून आया ना रूह रोयी मोहब्बतें इतनी भी न हो के दुआ न लग...