नजर से नजर...

नजर से नजर मिली, नजर गँवा बैठे
तुम्हारे शहर में क्या आये, दिल गँवा बैठे ।

यू ही पूछ...

यू ही पूछ लेता हूँ उनसे मगर
मेरी रजा पे उनका फैसला आम नहीं होता
वो भी तो सच कहती है
ये इश्क़ है, सरे आम नहीं होता ।

मेरे मौला..

मेरे मौला तेरी इनायतों की कमी से खफा नहीं मैं,

मेरे कर्मो का फलसफा मुझे दोजख ना मिले ।


हुक्मरानों की

हुक्मरानों की बस्ती में, जलसा सा लगता है आज
किसी आशिक का जनाजा है, या मेहरबाँ की डोली मालूम नहीं...

वो आयेेे..

वो आयेेे मेरे दर पे, सितम ये क्या कर दिया
जो आँखें कभी भीगी न थी, उन्हें समंदर कर दिया ।

शेरो शायरी...

शेरो शायरी की दुकाने अब बन्द ही सही
मुशायरों की मंडियों में अपने भाव कम है..

मुकद्दर...

मुकद्दर हँसता है रोज मेरी नादानियों पर
मुकद्दर को नहीं मालूम क्या चीज हूँ मैं..

बिखर गया हूँ...

बिखर गया हूँ इतना के जुड़ा नहीं जाता हसरतेे इतनी भी ना हो के दवा न लगे ना दिल को सुकून आया ना रूह रोयी मोहब्बतें इतनी भी न हो के दुआ न लग...