महफ़िल में तेरी आया था कि, शायद दिल बहल जाये ;
मेरे सीने में छुपा हैं जो ग़म, शायद ख़ुशी में बदल जाये ;
शायद मिल जाये कोंई ऐसा, जिसे कह सकूँ दर्द ऐ दिल;
तूफ़ान में फंसी मेरी कश्ती को, मिल जाये कोई साहिल;
तेरी महफ़िल में नहीं मिली मंजिल मुझको, तेरी महफ़िल ना आई मुझको रास;
ना रास आएगी कोंई जगह, क्योंकि रहता हैं हर पल उसका ख्याल;
जो ना बन सकी तलवार मेरी, मैं ना बन सका जिसकी ढाल !!
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