बिखर गया हूँ...

बिखर गया हूँ इतना के जुड़ा नहीं जाता
हसरतेे इतनी भी ना हो के दवा न लगे
ना दिल को सुकून आया ना रूह रोयी
मोहब्बतें इतनी भी न हो के दुआ न लगे
मोहब्बत ए जुनूं कुछ ऐसा छाया
कीमते इतनी भी ना हो के मौका ना लगे
टूट कर लिखता हूँ तो हंस रहे है
ज़ख्म गहरा तो है पर लहू न निकले !

ना चैन..

ना चैन आया, ना दिल को सुकून
बस वो याद आये और उनके वहम..

न चिराग़...

न चिराग़ बुझते, न बुझती शमाँऐं देखो
इश्क़ में अंधे का ये सहारा देखो...

मोहब्बत...

मोहब्बत का असर कह दो या गरीबी का सबक कह दो जो भी कहो एक शख्स से शायर का सफ़र कह दो..

नफरत..

नफरत गर करुं तो कितनी करुं उनसे मौला
न मोहब्बत से खारा कुछ न मोहब्बत से मीठा कुछ..

तेरे शहर में....

तेरे शहर में क्या आया बदनाम हो गया..न नज़र से नज़र मिली और कत्ले आम हो गया ।

बिखर गया हूँ...

बिखर गया हूँ इतना के जुड़ा नहीं जाता हसरतेे इतनी भी ना हो के दवा न लगे ना दिल को सुकून आया ना रूह रोयी मोहब्बतें इतनी भी न हो के दुआ न लग...